Friday, March 29, 2024
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हिमाचल चुनाव : एंटी इनकंबेंसी में फंसी बीजेपी, मोदी और नड्डा की प्रतिष्ठा दांव पर 

अखिलेश अखिल

हिमालयी प्रदेश वैसे तो बड़ा शांत प्रदेश है लेकिन चुनाव के दौरान यह प्रदेश कुछ ज्यादा ही अशांत हो जाता है. इस प्रदेश की अबतक की परंपरा तो यही रही है कि हर पांच साल बाद यहां सत्ता बदल जाती है और यहां की जनता इस खेल में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती रही है. कह सकते है कि लोकतंत्र का असली मायने हिमाचल निभाता रहा है. अब सवाल ये है कि क्या इस बार भी हिमाचल की जनता अपनी परंपरा को निभायेगी ? यह बड़ा सवाल है. क्योंकि बीजेपी की परंपरा अब यह बन गई है कि जहां उसके पैर एक बार जम जाते हैं, जल्दी उखड़ते नही है. बीजेपी को लगता है कि अगर बीजेपी शासित राज्यों में अगर कोई बदलाव हो गए तो उसके इकबाल पर सवाल उठेंगे. पिछले एक दशक से बीजेपी की जो राजनीति चल रही है उसके मुताबिक बीजेपी हार पसंद नही करती. यह बात और है कि बीजेपी चुनाव हार कर भी सत्ता में लौटती है, लेकिन उसके लिए बड़ा ऑपरेशन करना होता है और बड़ी पूंजी भी लगानी होती है.

अब सवाल है कि हिमाचल में इस बार बीजेपी का क्या होगा ? पहले इस प्रदेश में बीजेपी की भिड़ंत सिर्फ कांग्रेस से होती थी लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी भी वहां उछल कूद कर रही है. उसने कुछ इलाकों में अपनी जमीन भी तैयार कर ली है और जिस ढर्रे पर बीजेपी चलती रही है उसे भी अपना लिया है. बीजेपी की मुसीबत इस बार कुछ ज्यादा बढ़ी है. यह बात और है कि प्रायोजित चुनावी सर्वे आज भी बीजेपी के पक्ष में है, लेकिन बीजेपी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है. पार्टी के नेता परेशान हैं. यहां तक कि पार्टी के बड़े नेता मोदी, शाह और नड्डा कुछ ज्यादा ही परेशान हैं. बीजेपी को लग रहा है कि पिछले आठ साल के केंद्र के काम से प्रदेश के युवा ज्यादा दुखी है और पांच साल के राज्य की सरकार से भी जनता दुखी हैं. बीजेपी इसे एंटी इनकंबेंसी के रूप में देख रही है. उधर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इसका लाभ लेने को तैयार है. लेकिन बीजेपी की सबसे बड़ी समस्या बागी उम्मीदवारों को लेकर है. करीब दर्जन भर भागी उम्मीदवार मैदान में खड़े है, और बीजेपी उम्मीदवार को ही चुनौती दे रहे हैं. कहा जा रहा है कि इनमे से आधे बागी उम्मीदवार भी बीजेपी को हराकर बाजी मार गए तो बीजेपी की सरकार नही बनेगी. बीजेपी की असली चिंता इसी बात को लेकर है.

बीजेपी ने हिमाचल में आठ विधायको के टिकट काटे हैं. और करीब आधा दर्जन कांग्रेसी विधायको और नेताओं को मैदान में टिकट देकर उतारा है. इससे बीजेपी के कई और स्थानीय नेता नाराज हैं और पार्टी के खिलाफ भी हैं. हालाकि बागी और विरोध करने वाले नेताओं को मानने की कोशिश हर स्तर पर हुई है, लेकिन मामला बना नही है.

गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश सिर्फ 68 विधानसभा और चार लोकसभा सीटों वाला प्रदेश है, लेकिन बीजेपी वहां इस तरह से चुनाव लड़ रही है, जैसे वह उसके लिए जीवन मरण का चुनाव हो. वैसे बीजेपी इन दिनों आमतौर पर सारे चुनाव इसी अंदाज में लड़ती है. गुजरात में भी जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने को झोंका है. वह अभूतपूर्व है. चुनाव की घोषणा से पहले ही गुजरात में मोदी, शाह और राजनाथ सिंह के अलावा सारे बड़े नेताओं के दौरे हुए, और बड़ी बड़ी घोषणाएं हुईं. इसी तरह बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में भी पूरी पार्टी को उतारा है, जहां 12 नवंबर को मतदान होना है. यह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह प्रदेश है. इस लिए पार्टी इतनी मेहनत कर रही है.

नड्डा ने प्रचार में रात दिन एक किया हुआ है तो पांच नवंबर से प्रधानमंत्री मोदी की रैलियां शुरू होने वाली हैं. अमित शाह, राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियां होंगी. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी तो प्रचार में उतर भी गए हैं. बीजेपी ने एक दिन में सभी 68 क्षेत्रों में रैली की, जिनमे से तीन क्षेत्रों में धामी की रैली हुई. कुल्लू मनाली और लाहौल स्पीति में खुद नड्डा की रैलियां हुईं तो तीन-तीन क्षेत्रों में खट्टर और धामी ने अपनी रैलियों में मोर्चा संभाला. जम्मू कश्मीर के जितेंद्र सिंह और देवेंद्र सिंह राणा की कई रैलियां हुईं हैं तो भूपेंद्र यादव, किरेन रिजीजू, अनुराग ठाकुर, ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे कई केंद्रीय मंत्रियों की सभाएं हुई हैं. संबित पात्रा, दुष्यंत गौतम, हरियाणा सरकार के मंत्री कंवल पाल गुर्जर, अविनाश राय खन्ना, बीजेपी युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या आदि की भी रैलियां हुई हैं.

अब बड़ा सवाल इकबाल का हो गया है. बीजेपी में सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री मोदी का ही है. फिर हिमाचल में इकबाल नड्डा का भी है. लेकिन इस बार सूबे की जनता जिस तरह से बीजेपी पर हमलावर है और सवाल पूछ रही है. उससे लगता है कि बीजेपी का इकबाल अब पहले वाला नहीं रहा. इकबाल मोदी का भी कम हुआ है और नड्डा का भी. बता दें कि हिमाचल में मुस्लिम वोट बहुत कम है और दलित, पिछड़ी जातियां का वोट भी कम है. अधिकतर वोट सवर्ण समुदाय के है. खासकर ब्राह्मण और ठाकुर तो सबसे ज्यादा हैं. सब पढ़े लिखे हैं और देश की हालत को भी बखूबी जानते हैं. सरकार की नीतियों पर भी उनकी नजर है. और कांग्रेस की राजनीति पर भी जनता नजर गड़ाए हुए बैठी है.

इधर जब से कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी हिमाचल में घर बनाकर रहने लगी है उसका बड़ा असर वहां की राजनीति पर पड़ता दिख रहा है. बहुत सारे कांग्रेसी नेता जो रूठकर बीजेपी के साथ चले गए थे अब वापस कांग्रेस में लौट आए हैं. ठाकुरों का वोट अभी भी बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ है. लेकिन ब्राह्मणों का वोट कांग्रेस के साथ जाता दिख रहा है. ऐसे स्थिति में लगता है कि बीजेपी को छोटा झटका भी घाटे का सौदा होगा. उधर आप पार्टी अगर कुछ भी सीट लाने में सफल हो जाती है तो बीजेपी का खेल बिगड़ सकता है. इस चुनाव में अभी कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. लेकिन बीजेपी को चुनौती वही दे रही है. अगर आम आदमी पार्टी और बागी उम्मीदवार बाजी मरते है तो त्रिशंकु विधान सभा की स्थिति खड़ी हो सकती है. फिर आगे की राजनीति किसके पक्ष में जाएगी, देखना होगा.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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