Tuesday, April 16, 2024
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राजनीतिक जयकारा के बीच पांच सौ और दो हजार के नोटों के 9 लाख करोड़ गायब 

 

सरकार कहती है कि देश में सब कुछ ठीक चल रहा है. सरकार यह भी कहती है कि मोदी काल में ही देश को सबकुछ मिला है. इससे पहले देश में कुछ हुआ ही नहीं. सरकार यह भी कहती है कि इस सरकार के इकबाल की वजह से दुनिया भारत के सामने झुकने लगी है. मोदी सरकार यह भी कहती है कि देश में कोई समस्या नहीं है. बीजेपी को छोड़कर सभी पार्टियां गलत है, और भ्रष्टाचार

में लिप्त भी हैं. लेकिन सरकार यह नहीं बता पा रही है कि नोटबंदी के बाद पांच सौ और दो हजार के जारी नए नोट अचानक गायब कहाँ हो गए. आरबीआई के मुताबिक़ 2016 के बाद करीब एक लाख करोड़ से ज्यादा के कालाधन सामने तो आया लेकिन इसी दौरान पांच सौ और दो हजार के नोटों में अब 9.21 लाख करोड़ गायब हो गए हैं. सरकार इस पर मौन है.

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की 2016-17 से लेकर ताजा 2021-22 तक की एनुअल रिपोर्ट्स बताती हैं कि आरबीआई ने 2016 से लेकर अब तक 500 और 2000 के कुल 6849 करोड़ करंसी नोट छापे थे. उनमें से 1680 करोड़ से ज्यादा करंसी नोट सर्कुलेशन से गायब हैं. इन गायब नोटों की वैल्यू 9.21 लाख करोड़ रुपए है. इन गायब नोटों में वो नोट शामिल नहीं हैं, जिन्हें खराब हो जाने के बाद आरबीआई ने नष्ट कर दिया.

आरबीआई 2019-20 से 2000 के नए नोट नहीं छाप रहा है. जबकि 500 के नोटों की छपाई 2016 के मुकाबले 76% बढ़ गई है. आरबीआई ने कभी भी आधिकारिक तौर पर यह स्वीकार नहीं किया है कि सर्कुलेशन से नोटों के गायब होने की वजह क्या है. मगर जानकार मानते हैं कि इसका सबसे बड़ा कारण लोगों का करंसी जमा करके रखना है. जरूरी नहीं कि यह पूरी रकम ही काला धन हो, लेकिन यह बैंकिंग सिस्टम से बाहर जरूर है.

कानून के मुताबिक ऐसी कोई भी रकम जिस पर टैक्स न चुकाया गया हो, काला धन मानी जाती है. बैंकिंग सिस्टम से बाहर रखी यह रकम जब बिना टैक्स चुकाए कैश ट्रांजैक्शन में इस्तेमाल होती है तो यही काला धन बन जाता है. हालांकि एक्सपर्ट्स मानते हैं कि घरों में जमा कैश कुल काले धन का 2-3% ही होता है. 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्विस बैंक्स के खातों में जमा भारतीयों का काला धन 300 लाख करोड़ रुपए था.

2014 में मोदी सरकार यह कहकर सत्ता में आयी थी कि विदेशों में जमा कालधन को वह वापस लाएगी और देश के भीतर कालाधन जमा न हो इसकी समुचित व्यवस्था करेगी. लेकिन आठ साल बीत जाने के बाद भी न तो विदेशों से कालाधन लाया गया और न ही देश के भीतर नए तरीके से जमा होते कालाधन पर ब्रेक ही लगाई गई. आज हालत ये है कि देश के भीतर नए तरीके से कालाधन का निर्माण हो रहा है. आरबीआई की नयी रिपोर्ट से साफ़ है कि देश का एक वर्ग इतना पैसा रखने को बेताब है जिसकी कल्पना सरकार भी नहीं कर सकती. सरकार को यह बताना चाहिए कि आखिर जब उसकी सारी नीति देश हित में है तो 9 लाख करोड़ से ज्यादा के नोट चलन से कैसे गायब है.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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