Friday, March 29, 2024
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मुसलमान इस बार गुजरात में किसके साथ जायेंगे ?

 

अखिलेश अखिल

गुजरात में चुनावी रण पूरे शबाब पर है. बीजेपी को अपनी 27 साल की पुरानी सत्ता बचाने की चुनौती है तो कांग्रेस की चुनौती बीजेपी को सत्ता से हटाने की है. बीजेपी को गुजरात में हराकर कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि मोदी और शाह को भी हराया जा सकता है, लेकिन सच यही है कि कांग्रेस गुजरात में कोई बड़ा खेल अबतक करने में विफल रही है. उसकी कई वजहें रही है, जिनमे सबसे अहम कारण पार्टी संगठन को कमजोरी रही. बार बार कांग्रेस नेताओं का पाला बदलना रहा. आज गुजरात में बीजेपी की जो हैसियत है उसमे कांग्रेस से निकल कर गए विधायक, नेताओं की बड़ी भूमिका है.

इस बार तो गुजरात की राजनीति में आम आदमी पार्टी ने भी शंखनाद किया हुआ है. दिल्ली और पंजाब को फतह करने के बाद ‘आप’ की नजर देश के उन सभी छोटे राज्यों पर टिकी है. जहां कांग्रेस और बीजेपी आमने सामने है. गुजरात भी ऐसा ही राज्य है, जहां बीजेपी और कांग्रेस की लड़ाई को इस बार ‘आप’ ने त्रिकोणात्मक बना दिया है ‘आप’ की गुजरात में मौजूदगी कांग्रेस के लिए एक नई चुनौती है, तो बीजेपी भी कोई सहज नहीं दिख रही है. इस बार बीजेपी भी ‘आप’ के डंक से आहत है. उसे लग रहा है कि खेल आसान नहीं है. अगर ‘आप’ ने कुछ सीटों पर भी बीजेपी को शिकस्त दे दी तो परिणाम कुछ भी हो सकते हैं.

बीजेपी को परेशानी ओवैसी की पार्टी एमआईएम से भी है. वही कांग्रेस भी ओवैसी के खेल से परेशान है. उसे ‘आप’ और ओवैसी से भी मुकाबला करना पड़ रहा है और बीजेपी से भी. ऐसे में सभी दलों की नजर मुस्लिम वोटरों पर जा टिकी हैं. अबतक के चुनाव में गुजरात के अधिकतर वोटर कांग्रेस के साथ खड़े रहे हैं, लेकिन इस बार ऐसा संभव होता नहीं लगता. मुस्लिम वोटर्स इस बार ओवैसी के साथ भी जायेंगे और आप के साथ भी. ऐसे में कांग्रेस भले ही पिछले चुनाव की तुलना में इस बार बेहतर प्रदर्शन की बात करती हो लेकिन मुस्लिम वोटर्स के बदलते पैटर्न को देखते हुए कहा जा सकता है कि कांग्रेस शायद ही बेहतर प्रदर्शन कर सके.

हर कोई मान रहा है कि गुजरात में इस बार आम आदमी पार्टी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में लगी है. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी भी कई सीटों पर सेंधमारी की कोशिश में हैं. सूबे में करीब 9 से 10 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं. 30 से अधिक विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 15 फीसदी से ज्यादा है. इनमें से 20 में ये संख्या 20 फीसदी से भी ज्यादा है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर मुसलमान इस बार गुजरात में किसका साथ देंगे.

गुजरात में करीब 10 फीसदी मुस्लिम है. इस लिहाज से देखें तो राज्य विधानसभा में आबादी के लिहाज से करीब 18 विधायक हो सकते हैं. हालांकि, गुजरात की किसी भी विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या कभी सात से ज्यादा नहीं रही. 2017 में तीन मुस्लिम उम्मीदवार जीतकर विधायक बने थे. तीनों कांग्रेस के टिकट पर ही जीते थे. वहीं, 2012 विधानसभा चुनाव में महज दो मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में सफल रहे थे.

कांग्रेस ने मौजूदा चुनाव में छह मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं. इनमें सूरत पूर्व से असलम साइकिलवाला, वांकानेर से मोहम्मद जावेद पीरजादा, अबडास सीट से ममदभाई जुंग जत, वागरा से सुलेमान पटेल, दरियापुर सीट से ग्यासुद्दीन शेख, जमालपुर खड़िया से इमरान खेड़ावाला को टिकट दिया है. आम आदमी पार्टी ने तीन मुस्लिम चेहरों को अपना उम्मीदवार बनाया है. दरियापुर से ताज कुरैशी, जंबसुर से साजिद रेहान और जमालपुर खेड़िया से हारुन नागोरी को टिकट दिया है. 30 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान करने वाली एआईएमआईएम ने 16 नवबंर तक 14 सीटों पर उम्मीदवारों उतारे हैं. इनमें से 12 मुस्लिम हैं.

स्थानीय पत्रकार सहल कुरैशी कहते है कि “अब तक गुजरात के मुसलमान कांग्रेस के साथ खड़े होते थे. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता. ‘आप’ के आने से कांग्रेस को परेशानी हो सकती है. मुस्लिम वोट बाटेंगे यह तय है. ‘आप’ ने लड़ाई को रोचक बना दिया है. ‘आप’ से बीजेपी को भी परेशानी है. बीजेपी डरी हुई है, क्योंकि उसे सत्ता जाने का डर है. इसके साथ ही जिन सीटों पर ओवैसी की पार्टी एमआईएम ने उम्मीदवार उतारे हैं. वहां मुकाबला और दिलचस्प हो सकता है. मुस्लिम वोटों में अगर बंटवारा होता है तो इसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है.”

बता दें कि 2011 की जनगणना के मुताबिक गुजरात में कुल मुस्लिम आबादी करीब 10 फीसदी है. भुज और भरूच जिलों में मुस्लिमों की संख्या 20 फीसदी से ज्यादा है. वहीं, अहमदाबाद में वेजलपुर, दरियापुर, जमालपुर खाड़िया और दानीलिमड़ा जैसी सीटों पर मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं. कुल बीस सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या 20 फीसदी से ज्यादा है. इनमें से चार सीटें अहमदाबाद, तीन-तीन भुज और भरूच जिले की हैं. सिर्फ जमालपुर खड़िया गुजरात की इकलौती सीट है. जहां मुस्लिम मतदाता 50 फीसदी से भी ज्यादा हैं. यहां कुल मतदाताओं में 61 फीसदी आबादी मुस्लिम मतदाताओं की है. इसके अलावा दाणिलिमड़ा में 48%, दरियापुर में 46%, वागरा में 44%, भरूच में 38%, वेजलपुर में 35%, भुज में 35%, जंबुसर में 31% बापूनगर में 28% और लिंबायत में 26 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. 2017 में इन दस सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली सीटों में से पांच सीटें बीजेपी और पांच सीटें कांग्रेस को मिलीं थीं. 2012 की बात करें तो, इन दस में से आठ सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. वहीं, कांग्रेस को महज दो सीटों से संतोष करना पड़ा था.

जानकर यह भी मान रहे है कि इस बार ‘आप’ को भी मुस्लिम वोट मिलेंगे और ऐसा हुआ तो इसका सीधा लाभ बीजेपी को होगा. बीजेपी चाहती भी यही है कि मुस्लिम वोट बंट जाए ताकि कांग्रेस की सीटें कम हो, मगर ओवैसी ने गुजरात में कुछ सीटें जीत ली या फिर कुछ सीटों को प्रभावित कर दिया तो बीजेपी भी परेशानी झेलेगी.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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