इन दिनों दो ख़बरें कुछ ज्यादा ही चर्चित है. देश के भीतर बहुत सारी घटनाएं घट रही है लेकिन सियासी गलियारों में दो बातों की चर्चा कुछ ज्यादा ही हो रही है. पहली चर्चा तो मध्यप्रदेश को लेकर हो रही है. खबर के बीच में हैं सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान. कहा जा रहा है कि बीजेपी अब उनके काम से खुश नहीं है. उनके चेहरे का अब वह इकबाल नहीं रहा जो पहले हुआ करता था. बीजेपी को लगने लगा है कि अब सूबे में शिवराज सिंह के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी का माहौल है. करीब डेढ़ दशक से सीएम रहे शिवराज के चेहरे पर अब न तो जनता को भरोसा रह गया है, और न ही बीजेपी नेताओं में. बीजेपी के सामने अगला लोकसभा चुनाव है और उसके पहले ही विधान सभा चुनाव. इन चुनावों में बीजेपी हर हाल में जीत चाहती है, लेकिन जिस तरह से विपक्ष की तरफ से घरबंदी की तैयारी है. उसमे शिवराज का चेहरा अब कारगर नहीं दिख रहा. 2024 आम चुनाव से पहले बीजेपी किसी भी सूरत में इस राज्य को खोना नहीं चाहती. ऐसे में क्या चुनाव में शिवराज ही एक बार फिर बीजेपी का चेहरा बनेंगे या तब तक राज्य को नया सीएम मिलेगा?
यह चर्चा इसलिए हो रही है कि बीजेपी हाल में राज्यों में सीएम को बदलने का प्रयोग कर चुकी है. लेकिन बात इतनी भर नहीं है. अगर चौहान को बदलने का मन पार्टी बनाती है तो उनके जगह कौन लेगा? बीजेपी के सामने यह चुनौती होगी. इस पद पर कम से कम चार लोगों की करीबी नजर है. इनमें किसी एक का चयन पार्टी के लिए टेढ़ी खीर हो सकता है. क्या यह दुविधा शिवराज सिंह चौहान के लिए संजीवनी का काम कर सकती है?
उधर, चर्चा के केंद्र में राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा भी है. इस यात्रा को मिले रेस्पॉन्स से अभी तक कांग्रेस खुश है. लेकिन जानकारों का कहना है कि असली रेस्पॉन्स 30 सितंबर से पता चलेगा. अब तक यात्रा तमिलनाडु से शुरू होकर केरल में घूम रही थी, जो कांग्रेस का मजबूत इलाका रहा है और वहां सामने मुख्य विरोधी लेफ्ट दल रहे हैं. इस बात को लेकर यात्रा के रूट पर सवाल भी उठे, लेकिन अब 30 सितंबर को यात्रा केरल से निकलकर कर्नाटक में प्रवेश करेगी, जहां मुख्य मुकाबला बीजेपी से है.
राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव भी हैं. ऐसे में कर्नाटक में 13 दिनों की यात्रा को लेकर बड़ी उत्सुकता है. यहां भी कांग्रेस डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया गुट में बंटी है. दोनों गुट यात्रा के दौरान अपनी पूरी ताकत लगाने में जुटे हैं. माना जा रहा है कि अगर यात्रा के दौरान दोनों गुट को एक करने की कोशिश राहुल गांधी कर पाए और डीके और सिद्धारमैया दोनों उनके साथ इसमें शामिल हुए तो यह कांग्रेस के लिए राहत की बात होगी. जिसकी सम्भावना कम ही दिख रही है.
साथ ही बीजेपी पर भी सबकी निगाहें है. जानकार मान रहे हैं कि कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है और उसके आगे भी जिन राज्यों से यात्रा गुजरने वाली है. उनमे से अधिकतर राज्यों में भी बीजेपी सरकार है. ऐसे में इस बात की सम्भावना भी बनती दिख रही है कि राहुल की इस यात्रा का विरोध बीजेपी कर सकती है. कोई बड़ी घटना घट सकती है. जानकार यह भी मानते हैं कि बीजेपी की कोशिश होगी कि यात्रा में खलल डालकर यात्रा को रोका जाय.
हालांकि कांग्रेस भी इस संभावना से इंकार नहीं कर रही है. लेकिन अगर ऐसा होता है तो राजनीतिक लाभ किसे और कितना मिलेगा इस पर भी मंथन जारी है.