राजनीति कब किस करवट बैठती है यह कौन जनता है ? जो कभी दुश्मन दिखता है, वही एक समय में दोस्त बनकर सामने आने लगता है. यही हालत मौजूदा राजनीति में देखने को मिल रही है. जो शिवसेना कभी बिहार और यूपी के लोगों के खिलाफ जहर उगलती थी, उत्तर भारतीयों पर हमले करने से बाज नहीं आती थी, अब वही शिवसेना बंटवारे के बाद उत्तर भारतियों के वोट के लिए परेशान है. हालिया आदित्य ठाकरे का पटना दौरा कुछ यही सब बयां कर रहा है. शिवसेना के युवा नेता आदित्य ठाकरे पटना जाकर राजद नेता तेजस्वी यादव और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने गए तो पटना से लेकर दिल्ली और मुंबई में राजनीति गरमा गई. अब कहा जा रहा है कि बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी याद आगामी बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनावों में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के लिए प्रचार कर सकते हैं.
यह अटकलें तब सामने आईं जब आदित्य ठाकरे ने बुधवार को पटना में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाकात की और कई मुद्दों पर चर्चा की. ठाकरे के पटना पहुंचने के बाद, अटकलें लगाई गईं कि वह 2024 के लोकसभा चुनावों में विपक्षी एकता या गठबंधन पर बात करेंगे लेकिन वो बीएमसी चुनावों के बारे में अधिक चिंतित दिखे. अब समझिए आखिर इस बार उद्धव गुट को तेजस्वी और नीतीश कुमार की शरण में क्यों आना पड़ा. तो जान लीजिए सारा खेल वोट बैंक का है.
महाराष्ट्र में शिवसेना के निशाने पर अक्सर उत्तर भारतीय लोग रहे हैं. शिवसेना नेता कई बार बिहार और यूपी के छात्रों की पिटाई तो कई बार मजदूरों की पिटाई में शामिल रहे हैं. ऐसे में कहा जाए तो शिवसेना की छवि उत्तर भारतीय विरोधी बन गई है. लेकिन इस बार बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं होने और शिंदे गुट के अलग हो जाने से उद्धव ठाकरे को वोट बैंक खिसकने का डर सताने लगा है. ऐसे में उत्तर भारतीय वोट बैंक साधने के लिए तेजस्वी और नीतीश कुमार से बेहतर विकल्प फिलहाल नहीं हो सकता. ठाकरे गुट को उम्मीद है कि ये दोनों नेता अगर प्रचार करें तो कहीं न कहीं बिहार और यूपी के लोग उनके पक्ष में मतदान कर सकते हैं.
बता दें कि मुंबई में करीब 40 लाख उत्तर भारतीय वोटर हैं. यानी वो मतदाता जो यूपी या बिहार के रहने वाले हैं. रिपोर्ट के मुताबिक बीएमसी में कुल 227 वार्ड हैं और इनमें से 40 पर तो उत्तर भारतीय मतदाताओं की ज्यादा पैठ है. उद्धव गुट को लग रहा है कि अगर उत्तर भारत के नेता उनके पक्ष में प्रचार कर दे तो संभव है कि निगम चुनाव में उसकी हालत बेहतर हो सकती है. अब देखना है कि यह राजनीति कितनी रंग लाती है.