Monday, December 9, 2024
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योगीराज का मदरसों पर नया फरमान, प्रार्थना से पहले राष्ट्रगान अनिवार्य

25 मार्च को योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी के साथ से यूपी में योगीराज की शुरुआत हो गई. हिंदुत्व के अजेंडे पर यूपी की सत्ता में फिर से लौटी बीजेपी की योगी सरकार आगे क्या कुछ करती है इसे देखना है. जनता की उम्मीदों और समाज में भाईचारे को बढ़ाने में कितना सफल होगी योगी सरकार, इस पर अब सबकी निगाहें होंगी. लेकिन योगीराज से पहले जिस तरह से मदरसों पर नकेल कसने की कोशिश की गई है उससे समाज में एक नई राजनीति की शुरुआत कही जा रही है. इस राजनीति का क्या हश्र होगा इसे देखना है.
योगी आदित्यनाश सरकार के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से पहले ही मदरसों पर नया फरमान आ गया है. इसके तहत अब प्रार्थना से पहले मदरसों में हर दिन राष्ट्रगान को अनिवार्य कर दिया गया है. विशेषज्ञों ने इसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है.
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड ने फरमान जारी किया है कि यूपी के सभी मदरसों में सुबह की प्रार्थना के साथ ही राष्ट्र गान भी अनिवार्य रूप से गाया जाए. मदरसा शिक्षा बोर्ड राज्य के मदरसों में शिक्षा के विषय का मूल संस्थान है. लेकिन आश्चर्यजनक बात यह है कि किसी अन्य शिक्षण संस्थान के लिए ऐसा कोई आदेश जारी नहीं हुआ है. ध्यान रहे कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अलावा राष्ट्र गान को गाना वैकल्पिक ही रहा है, न कि अनिवार्य, लेकिन मदरसा शिक्षा बोर्ड ने यह कहते हुए मदरसों में इसे अनिवार्य कर दिया है कि इससे “मदरसे के छात्रों में भी देश भक्ति और राष्ट्र भावना उत्पन्न होगा और वे इस बहाने देश के इतिहास और संस्कृति को समझ सकते हैं.”
बता दें कि उत्तर प्रदेश में इस समय 560 स्थाई मदरसे हैं जोकि बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं. मदरसा बोर्ड के चेयरमैन इफ्तिखार अहमद जावेद ने इस विषय में मीडिया से कहा कि राष्ट्र गान को गाना अनिवार्य किए जाने के साथ ही नए सत्र से मदरसा शिक्षकों की बायोमीट्रिक उपस्थिति भी अनिवार्य की जा रही है. साथ ही छात्रों की ऑनलाइन पंजीकरण की व्यवस्था भी की जा रही है.
जावेद ने कहा कि मदरसा शिक्षकों की भर्ती के लिए अब मदरसा टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (एमटेट) का आयोजन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि मदरसों में शिक्षकों की भर्ती में बड़े पैमाने पर परिवारवाद चलता रहा है. उन्होंने कहा कि, “शिक्षकों की भर्ती में परिवारवाद एक तरह का नियम बन गया है. इसीलिए मदरसा बोर्ड एमटेट की व्यवस्था कर रहा है, लेकिन चयन प्रक्रिया को प्रबंधन द्वारा ही अंतिम रूप दिया जाएगा. इस बारे में सरकार को औपचारिक प्रस्ताव जल्द भेजा जाएगा.”
याद दिला दें कि योगी सरकार ने 2018 में महाराज गंज जिले के एक मदरसे की मान्यता इस आधार पर रद्द कर दी थी, क्योंकि वहां के टीचर ने छात्रों को स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रगान गाने से मना किया था.
मदरसा बोर्ड के इस फैसले पर शिक्षाविदों का कहना है कि राष्ट्रगान को अनिवार्य करना संविधान की मूल भावना का उल्लंघन है. विशेषज्ञों के मुताबिक संविधान का अनुच्छेद 30(1) सभी अल्पसंख्यकों को धर्म अथवा भाषा के आधार पर अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार देता है. इसी तरह अनुच्छेद 30 (2) कहता है कि सरकार किसी भी शैक्षणिक संस्थान के खिलाफ सिर्फ इस आधार पर कि वह अल्पसंख्य समुदाय द्वारा नियंत्रित है, भाषा या धर्म के आधार पर आर्थिक मदद देने में कोई भेदभाव नहीं कर सकती है.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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