Thursday, March 28, 2024
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बाबरी मस्जिद की शहादत के 30 साल : 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में क्या हुआ ? पढ़िए पूरी कहानी

अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ढांचे को लाखों की संख्या में पहुंचे कारसेवकों ने शहीद कर दिया था. इस घटना को गुजरे हुए आज 30 साल हो चुके हैं. 6 दिसंबर 1992 का दिन देश ही नहीं विश्व के इतिहास का सबसे काला दिन बन गया है.

दावा किया जाता रहा है कि 1528 अयोध्या में बाबर ने एक ऐसी जगह मंदिर तोड़ कर मस्जिद का निर्माण कराया था जिसे हिंदू राम जन्म भूमि मानते हैं. 22 और 23 दिसंबर 1949 की रात लगभग 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल में भगवान राम की मूर्तियां चोरी छुपे रख कर इस जगह को विवादित बना दिया गया. आनन फानन मस्जिद में ताला लगा दिया गया और नमाज का सिलसिला रोक दिया गया.

16 जनवरी 1950 को एक अपील में मूर्ति को विवादित जगह से हटाने से न्यायिक रोक की मांग. 5 दिसंबर 1950 को बाबरी मस्जिद को ढांचा नाम देकर राम की मूर्ति रखने के लिए केस दर्ज कर दिया गया. 18 दिसंबर 1961 को सुन्नी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मालिकाना हक के लिए केस किया. वर्ष 1984 में विश्व हिंदू परिषद ने बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने और मस्जिद की जगह पर भव्य मंदिर निर्माण के लिए अभियान शुरू किया. जिसके बाद 1 फरवरी 1986 फैजावाद जिला अदालत ने मुस्लिम पक्ष के विरोध के बावजूद विवादित जगह में हिंदुओं को पूजा की अनुमति दे दी. जून 1989 में भारतीय जनता पार्टी ने मंदिर आंदोलन में वीएचपी का समर्थन किया. और फिर 1 जुलाई 1989 को मामले में पांचवा मुकदमा दाखिल हुआ.

अभी ये मामला चल ही रहा था की 9 नवंबर 1989 को बाबरी के नजदीक ही हिंदू पक्ष को शिलान्यास की इजाज़त दी गई. 25 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा की. जिसके बाद देश के कई हिस्सों में साम्प्रदायिक दंगे हुए. बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव की चेतावनी के बावजूद नवंबर 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा जब बिहार पहुंची तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इधर केंद्र में बीजेपी ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इधर अक्तूबर 1991 में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के विवादित हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया.

और फिर भारत के इतिहास का वो दिन भी आ गया जब 30 साल पहले आज ही के दिन यानी 6 दिसंबर को अयोध्या में वह सब कुछ हो गया, जिसकी सबको आशंका थी. अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के ढांचे को लाखों की संख्या में पहुंचे कारसेवकों ने शहीद कर दिया था. 6 दिसंबर 1992 का दिन देश ही नहीं विश्व के इतिहास का सबसे काला दिन बन गया. देश भर में जगह जगह दंगे हुए, घर और दोकानें लूट ली गई. व्यवसाय तबाह कर दिए गए, उन घावों की टीस आज भी दिलों में उठती है.

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में चारों तरफ धूल ही धूल थी. यहां कोई आंधी नहीं चल रही थी, लेकिन यह मंजर किसी आंधी से कम भी नहीं था. ‘जय श्रीराम’, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘एक धक्का और दो… जैसे नारों से अयोध्या गूंज रही थी. मौजूद कार सेवकों के साथ लोगों की बड़ी संख्या मस्जिद परिसर के अंदर घुस गई थी और गुंबद पर उनका कब्जा हो गया था. जुनून में डूबे कारसेवक हाथों में बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा लिए उन पर वार पर वार करने लगे. जिस कारसेवक के हाथ में जो था, वो उसी से ढांचे को ध्वस्त करने में लगा था और देखते ही देखते वर्तमान, इतिहास हो गया था.

केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार और राज्य की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार खामोश तमाशाई बनी सब देखती रह गई थी. दिलचस्प बात यह थी कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि उसके आदेशों का पूरा पालन होगा, किसी को कानून तोड़ने नहीं दिया जाएगा, लेकिन आपसी सांठ गांठ के तहत मस्जिद की शहादत को रोक नहीं सके. और इसी साजिश के चलते ही न सिर्फ उन्हें बर्खास्त किया गया था बल्कि कल्याण सिंह को एक दिन की सजा भी हुई थी.

फिलहाल 6 दिसंबर के दिन सुबह लालकृष्ण आडवाणी कुछ लोगों के साथ विनय कटियार के घर गए थे. इसके बाद वो बाबरी मस्जिद परिसर की ओर रवाना हुए. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार के साथ उस जगह पहुंचे, जहां प्रतीकात्मक कार सेवा होनी थी. वहां उन्होंने तैयारियों का जायजा लिया था. इसके बाद आडवाणी और जोशी ‘राम कथा कुंज’ की ओर चल दिए. यह उस जगह से करीब दो सौ मीटर दूर था. यहां वरिष्ठ नेताओं के लिए मंच तैयार किया गया था. यह जगह मस्जिद के सामने थी. उस समय बीजेपी की युवा नेता उमा भारती भी वहां थीं, वो सिर के बाल कटवाकर आई थीं, ताकि सुरक्षाबलों को चकमा दे सकें.

सुबह 11 बजकर 45 मिनट पर फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने ‘बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर’ का दौरा किया. इसके बाद भी वहां कारसेवकों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी. दोपहर को अचानक एक कार सेवक किसी तरह गुंबद पर पहुंचने में कामयाब हो गया. इसके बाद जब भीड़ बढ़ी तो बेकाबू हो चुकी थी. मस्जिद के ढांचे को गिराने की बकायदा रिहर्सल भी की गई थी. इस घटना के बाद देश के कई राज्यों में सांप्रदायिक दंगे में हुए, जिनके सैकड़ो लोगों की जानें गई. देखते ही देखते नफरत के इस आंदोलन से देश की राजनीतिक दशा और दिशा ही बदल गई.

केंद्र सरकार के आदेश पर 16 दिसंबर 1992 को तोड़फोड़ की जांज के लिए एस.एस. लिब्रहान आयोग का गठन कर तफ्तीश शुरू की गई, सुनवाई पर सुनवाई होती रही, आयोग का कार्यकाल भी बार बार बढ़ाया जाता रहा, मगर सब “ठाक के तीन पात”, सभी आरोपी सीबीआई की विशेष अदालत से एक एक कर अपने आरोपों से मुक्त होते रहे, मानों आयोग का गठन जांच के लिए नहीं आरोपियों को बचाने के लिए गठित हुआ था.

30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने मामले में ऐतिहासिक फैसला दिया, विवादित हिस्से को तीन टुकड़ों में बांट दिया गया. एक हिस्सा मुस्लिम पक्ष को जबकि दो हिस्से हिंदू पक्ष को दे दिया गया. इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले को दोनों ही पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनावती दे दी. अब मामला सुप्रीम कोर्ट की दहलीज़ पर आ चुका था, तेज़ी रफ्तार से सुनवाई हो रही थी.

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने भी मंदिर के पक्ष में फैसला देते हुए 9 नवंबर को बाबरी मस्जिद परिसर केस के मालिकाना हक का अधिकार रामलला विराजमान को सौंप दिया.

कोर्ट ने केंद्र और यूपी सरकार को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए तीन महीने के भीतर अयोध्या में वैकल्पिक स्थल पर 5 एकड़ जमीन आवंटित करने का निर्देश दिया. इस के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिमों को अयोध्या में अलग से 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 1934, 1949 और 1992 में मुस्लिम समुदाय के साथ हुई ना-इंसाफी को गैरकानूनी करार दिया है.

Anzarul Bari
Anzarul Bari
पिछले 23 सालों से डेडीकेटेड पत्रकार अंज़रुल बारी की पहचान प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में एक खास चेहरे के तौर पर रही है. अंज़रुल बारी को देश के एक बेहतरीन और सुलझे एंकर, प्रोड्यूसर और रिपोर्टर के तौर पर जाना जाता है. इन्हें लंबे समय तक संसदीय कार्रवाइयों की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है. कई भाषाओं के माहिर अंज़रुल बारी टीवी पत्रकारिता से पहले ऑल इंडिया रेडियो, अलग अलग अखबारों और मैग्ज़ीन से जुड़े रहे हैं. इन्हें अपने 23 साला पत्रकारिता के दौर में विदेशी न्यूज़ एजेंसियों के लिए भी काम करने का अच्छा अनुभव है. देश के पहले प्राइवेट न्यूज़ चैनल जैन टीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर शो 'मुसलमान कल आज और कल' को इन्होंने बुलंदियों तक पहुंचाया, टीवी पत्रकारिता के दौर में इन्होंने देश की डिप्राइव्ड समाज को आगे लाने के लिए 'किसान की आवाज़', वॉइस ऑफ क्रिश्चियनिटी' और 'दलित आवाज़', जैसे चर्चित शोज़ को प्रोड्यूस कराया है. ईटीवी पर प्रसारित होने वाले मशहूर राजनीतिक शो 'सेंट्रल हॉल' के भी प्रोड्यूस रह चुके अंज़रुल बारी की कई स्टोरीज़ ने अपनी अलग छाप छोड़ी है. राजनीतिक हल्के में अच्छी पकड़ रखने वाले अंज़र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं साथ ही अपने बेबाक कलम और जबान से सदा बहस का मौज़ू रहे है. डी.डी उर्दू चैनल के शुरू होने के बाद फिल्मी हस्तियों के इंटरव्यूज़ पर आधारित स्पेशल शो 'फिल्म की ज़बान उर्दू की तरह' से उन्होंने खूब नाम कमाया. सामाजिक हल्के में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले अंज़रुल बारी 'इंडो मिडिल ईस्ट कल्चरल फ़ोरम' नामी मशहूर संस्था के संस्थापक महासचिव भी हैं.
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