अखिलेश अखिल
भूगर्भीय वैज्ञानिको और आधुनिक तकनीकी एक्सपर्ट्स के कमेंट्स को माने तो जल्द ही जोशीमठ का नामोनिशान मिट जायेगा. प्रकृति के साथ जिस तरह से छेड़छाड़ हुई है, उसमे अब विज्ञानं का कोई भी तरीका जोशीमठ को बचाने में सक्षम नहीं है. अब सरकार के सामने बस एक ही उपाय है कि वह जोशीमठ की जनता को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाए और उसके पुनर्वास की व्यवस्था करे. जोशीमठ से जुड़े जो वैज्ञानिक तथ्य सामने आ रहे हैं, वो चौंकाने वाले है, और सरकार की नीतियों का खुलासा करते हैं.
आप कह सकते हैं कि हिंदुओं और सिखों के पवित्र तीर्थ बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब का गेटवे कहा जाने वाला ये वही जोशीमठ नगर है, जिसके धंसने की खबरें इन दिनों में सुर्खियों में हैं. इस नगर के 603 मकानों में दरारें पड़ चुकी हैं. 70 परिवारों को दूसरी जगह भेजा जा चुका है. बाकी लोगों से सरकारी राहत शिविरों में जाने को कहा गया है.
जोशीमठ के भीतर के सारे जलभंडार तो पहले ही सुख गए हैं. खुदाई के दौरान जल श्रोत फुट गए थे, और सारा जल निकल गया. सरकार देखती रही और कुछ कर न पायी. या तो पहले की कहानी है. लेकिन इस कहानी का वर्तमान ये है कि जोशीमठ अब तबाही के कगार पर है. जोशीमठ के जलभंडार के खाली होने से इलाके के कई छोटे झरने और पानी के स्त्रोत सूख गए हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि बिना पानी जोशीमठ के नीचे के जमीन भी सूख गई है. इसी वजह से दरके हुए पहाड़ों के मलबे पर बसा जोशीमठ धंस रहा है. उनका दावा है कि अब इस नगर को तबाह होने से बचाना मुश्किल है.
बता दें कि टीबीएम मशीन से ये सुरंग गढ़वाल के पास जोशीमठ में बन रहे विष्णुगढ़ हाइ़ड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के लिए खोदी जा रही थी. जिससे जल श्रोत में छेद हो गया था. यह नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन यानी का प्रोजेक्ट है.
जूलॉजिस्ट और डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री रानीचौरी में एचओडी एसपी सती कहते हैं कि जोशीमठ टूटे हुए पहाड़ों के जिस मलबे पर बसा है. वह अब तेजी धंस रहा है. और अब इसे किसी भी तरह से रोका नहीं जा सकता है. बहुत जल्द ऐसा भी हो सकता है कि एक साथ 50 से 100 घर गिर जाएं. इसलिए सबसे जरूरी काम है यहां से लोगों को सुरक्षित जगह पर शिफ्ट किया जाए. ये कड़वा सच है कि जोशीमठ को धंसने से अब कोई नहीं बचा सकता है.
माना जाता है कि जोशीमठ शहर मोरेन पर बसा हुआ है, लेकिन यह सच नहीं. जोशीमठ मोरेन पर नहीं बल्कि लैंडस्लाइड मटेरियल पर बसा हुआ है. मोरेन सिर्फ ग्लेशियर से लाए मटेरियल को कहते हैं, जबकि ग्रैविटी के चलते पहाड़ों के टूटने से जमा मटेरियल को लैंडस्लाइड मटेरियल कहते हैं. जोशीमठ शहर ऐसे ही मटेरियल पर बसा हुआ है.
करीब एक हजार साल पहले लैंडस्लाइड हुआ था. तब जोशीमठ कत्युरी राजवंश की राजधानी हुआ करती थी. इतिहासकार शिवप्रसाद डबराल ने अपनी किताब उत्तराखंड का इतिहास में बताया है कि लैंडस्लाइड के चलते जोशीमठ की पूरी आबादी को नई राजधानी कार्तिकेयपुर शिफ्ट किया गया था. यानी जोशीमठ एक बार पहले भी शिफ्ट किया जा चुका है.
कुछ और जानकार मानते हैं कि जोशीमठ के नदियों से घिरे होने के कारण यहां जमीन के नीचे और ऊपर पानी का बहाव झरने की तरह लगातार होता रहता है. इससे धरातल पर नमी बनी रहती है. जोशीमठ जहां स्थित है उस इलाके में जमीन के भीतर की चट्टानें कमजोर हैं. और पैरेनियल स्ट्रीम से स्थिति और भी खराब हो चुकी है.
इसके अलावा जोशीमठ के ऊपर के इलाके में काफी बर्फबारी और तेज बारिश होती है. मौसम खुलता है और बर्फ पिघलती है तो जोशीमठ के चारों ओर नदियों में पानी का फ्लो तेज हो जाता है. सतह के कमजोर होने और भूस्खलन का यह भी एक बड़ा कारण है.
यह भी माना जाता है कि जोशीमठ के अधिकतर क्षेत्रों में नीस चट्टानें हैं. इनकी सतह खुरदुरी और दानेदार होती है. इनके बारे में हमने स्कूल के दिनों मे पढ़ा होगा. हमें पता ही है कि जमीन के नीचे चट्टानें हैं. उन्हें तीन भागों में बांटा जाता है जिसमें सबसे ऊपरी सतह को मेटामॉर्फिक चट्टान कहते हैं. मेटामॉर्फिक यानी कायांतरित होना यानी तेजी से आकार बदल लेना.