अमेरिकी सैन्य ताकत पर आधारित हालिया एक रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि अमेरिका भले ही आज भी दुनिया का सबसे ताकतवर देश है और उसकी अर्थव्यवस्था सबसे मजबूत है मगर युद्ध के मामले में वह रूस और चीनी सेना के सामने काफी कमजोर है. अमेरिकी सैनिक रूस और चीनी सेना के सामने सक्षम नहीं है. रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी सेना के जवान चीन और रूस से संभावित खतरों से लड़ने में कमजोर हैं. युद्ध जीतने के लिए पेंटागन की सेना को संघर्ष करना पड़ेगा.
कंजर्वेटिव हेरिटेज फाउंडेशन ने यूएस मिलिट्री स्ट्रेंथ की वार्षिक इंडेक्स में बताया कि अमेरिका की वर्षों की अंडरफंडिंग (गलत नीतियों) और खराब प्राथमिकताओं के कारण सेना वैश्विक मंच पर अन्य देशों की सेनाओं के खिलाफ जरूरी कदम उठाने में कमजोर है. वर्तमान अमेरिकी सैन्य बल दो क्षेत्रों से लड़ाई संघर्ष की स्थिति में जोखिम उठाने में सक्षम नहीं है.
मौजूदा हालात में विश्व में दो मोर्चों की लड़ाई की संभावना बढ़ गई है, क्योंकि एक तरफ रूस ने यूक्रेन पर युद्ध जारी रखा है तो दूसरी ओर चीन प्रशांत क्षेत्र में तेजी से आक्रामक हो रहा है. इस स्थिति में दोनों ओर से लड़ाई अमेरिकी सेना को मुश्किल में डाल सकती है.
रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिका की सैन्य क्षमता में कई सारी कमियां है, जैसे जवानों के पास क्षमता की कमी, पर्याप्त हथियार और उपकरण का नहीं होना, बड़ी समस्या है. इसमें मरीन कॉर्प्स (समुद्री भूमि बल सेवा) को क्षमता और तत्परता में मजूबत दर्जा दिया गया है, जबकि आर्मी को ”औसत” रेटिंग, अंतरिक्ष बल और नौसेना को ”कमजोर” और वायुसेना को ”बहुत कमजोर” बताया गया है.
रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि अमेरिका को अपनी ताकत मजबूत करनी है तो उसे जहाजों, मिसाइलों और अन्य हथियारों में निवेश करने के लिए तैयार होना चाहिए, जिससे भविष्य के संघर्ष की तैयारी के लिए आवश्यक उपकरणों के साथ बल की आपूर्ति की जा सके. रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में बाइडेन प्रशासन का वित्तीय वर्ष 2023 के लिए प्रस्तावित रक्षा बजट 5 प्रतिशत के करीब है जो मुद्रास्फीति की वर्तमान दर 10 प्रतिशत के करीब आधा है.
हाउस आर्म्ड सर्विसेज कमेटी सदस्य और विस्कॉन्सिन के रिपब्लिकन कांग्रेसी माइक गैलाघर ने कहा कि तेजी से आक्रामक चीनी सेना की सामना करने के लिए अमेरिका तैयार है, लेकिन यह गंभीर संकट पैदा करता है. उनके मुताबिक, यहां एक बड़ी समस्या यह है कि इंडो-पैसिफिक वाले क्षेत्र में दो थिएटर नौसेना और वायुसेना मौजूद हैं. लेकिन इन रिपोर्ट को देख कर बताया जा सकता है कि वह सबसे खराब काम कर रही हैं.
गैलाघर ने कहा, वर्तमान के भू-राजनीतिक वातावरण को देखते हैं तो हम अगले कुछ वर्षों के भीतर खुद को चीन या ताइवान के साथ प्रतिस्पर्धा में पाएंगे. अकेले नौसेना चीन और रूस से आने वाले खतरों से नहीं लड़ सकती है. यह रिपोर्ट बताती है कि पूरी सेना को कड़ी शक्ति में अधिक निवेश करने की जरूरत है.
रिपोर्ट के अनुसार, हार्ड-पावर के केंद्र में समस्या नौसेना के सिकुड़ते बेड़े का आकार है. दो युद्धों में लड़ने के लिए नौसेना को लगभग 400 जहाजों की आवश्यकता होगी. अभी मौजूदा समय में 292 जहाज ही हैं. हालांकि, हेरिटेज के वरिष्ठ रक्षा शोधकर्ता डकोटा वुड ने कहा कि जहाजों की संख्या कम होने के बावजूद नौसेना का संचालन धीमा नहीं हुआ है.
पिछले साल नवंबर में प्रकाशित पेंटागन की वार्षिक चीन सैन्य रिपोर्ट के अनुसार चीनी नौसेना के पास पहले से ही 355 जहाज हैं. 2026 तक लगभग 65 और जोड़ने की योजना है. वहीं 2030 तक चीन के पास 460 जहाज होने की उम्मीद है. वहीं ब्रिटिश रॉयल नेवी के पास केवल 17 या 18 सतही लड़ाके हैं. वुड ने कहा कि चीन लगभग हर साल अपने बेड़े में लगभग ब्रिटिश रॉयल नेवी के बराबर जहाज जोड़ रहा है. पेंटागन ने इस रिपोर्ट पर कुछ भी टिप्पणी से किया इन्कार कर दिया है.